Ramayan Ramayan Shlok Hindi To Sanskrit Translation For Better Life.
रामायण राम और सीता के बारे में एक प्राचीन संस्कृत महाकाव्य है। यह भारत के दो सबसे महत्वपूर्ण प्राचीन महाकाव्यों में से एक है, पहला महाभारत है। महाकाव्य मूल रूप से प्राचीन भारत के ऋषि (ऋषि) वाल्मीकि द्वारा लिखा गया था। पुस्तक में लगभग 96,000 श्लोक हैं और इसे सात भागों में विभाजित किया गया है। जिनमे से कुछ श्लोक निचे दिए गए है Ramayan Shlok
Ramayan Shlok 1

धर्म-धर्मादर्थः प्रभवति धर्मात्प्रभवते सुखम् ।
धर्मण लभते सर्वं धर्मप्रसारमिदं जगत् ॥
धर्म से ही धन, सुख तथा सब कुछ प्राप्त होता है
इस संसार में धर्म ही सार वस्तु है ।
Ramayan Shlok
Ramayan Shlok 2

सत्य -सत्यमेवेश्वरो लोके सत्ये धर्मः सदाश्रितः ।
सत्यमूलनि सर्वाणि सत्यान्नास्ति परं पदम् ॥
सत्य ही संसार में ईश्वर है; धर्म भी सत्य के ही आश्रित है;
सत्य ही समस्त भव – विभव का मूल है; सत्य से बढ़कर और कुछ नहीं है ।
Ramayan Shlok 3

उत्साह-उत्साहो बलवानार्य नास्त्युत्साहात्परं बलम् ।
सोत्साहस्य हि लोकेषु न किञ्चदपि दुर्लभम् ॥
उत्साह बड़ा बलवान होता है; उत्साह से बढ़कर कोई बल नहीं है ।
उत्साही पुरुष के लिए संसार में कुछ भी दुर्लभ नहीं है ।
Ramayan Shlok
Ramayan Shlok 4

क्रोध – वाच्यावाच्यं प्रकुपितो न विजानाति कर्हिचित् ।
नाकार्यमस्ति क्रुद्धस्य नवाच्यं विद्यते क्वचित् ॥
क्रोध की दशा में मनुष्य को कहने और न कहने योग्य बातों का विवेक नहीं रहता ।
क्रुद्ध मनुष्य कुछ भी कह सकता है और कुछ भी बक सकता है ।
उसके लिए कुछ भी अकार्य और अवाच्य नहीं है ।
Ramayan Shlok 5

कर्मफल-यदाचरित कल्याणि ! शुभं वा यदि वाऽशुभम् ।
तदेव लभते भद्रे! कर्त्ता कर्मजमात्मनः ॥
मनुष्य जैसा भी अच्छा या बुरा कर्म करता है, उसे वैसा ही फल मिलता है ।
कर्त्ता को अपने कर्म का फल अवश्य भोगना पड़ता है ।
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Ramayan Shlok 6

सुदुखं शयितः पूर्वं प्राप्येदं सुखमुत्तमम् ।
प्राप्तकालं न जानीते विश्वामित्रो यथा मुनिः ॥
किसी को जब बहुत दिनों तक अत्यधिक दुःख भोगने के बाद महान सुख मिलता है
तो उसे विश्वामित्र मुनि की भांति समय का ज्ञान नहीं रहता – सुख का अधिक समय भी थोड़ा ही जान पड़ता है ।
Tulsidas Ramayan Shlok 7

निरुत्साहस्य दीनस्य शोकपर्याकुलात्मनः ।
सर्वार्था व्यवसीदन्ति व्यसनं चाधिगच्छति ॥
उत्साह हीन, दीन और शोकाकुल मनुष्य के
सभी काम बिगड़ जाते हैं , वह घोर विपत्ति में फंस जाता है ।
Ramayan Shlok 8

अपना-पराया-गुणगान् व परजनः स्वजनो निर्गुणोऽपि वा ।
निर्गणः स्वजनः श्रेयान् यः परः पर एव सः ॥
पराया मनुष्य भले ही गुणवान् हो तथा स्वजन सर्वथा गुणहीन ही क्यों न हो,
लेकिन गुणी परजन से गुणहीन स्वजन ही भला होता है अपना तो अपना है
और पराया पराया ही रहता है ।
Ramayan Slok 9 Arth Sahit

न सुहृद्यो विपन्नार्था दिनमभ्युपपद्यते ।
स बन्धुर्योअपनीतेषु सहाय्यायोपकल्पते ॥
सुह्रद् वही है जो विपत्तिग्रस्त दीन मित्र का साथ दे और सच्चा बन्धु वही है
जो अपने कुमार्गगामी बन्धु (बुरे रास्ते पर चलने वाले व्यक्ति) की भी सहायता करे।
Ramayan Shlokk 10

आढ् यतो वापि दरिद्रो वा दुःखित सुखितोऽपिवा ।
निर्दोषश्च सदोषश्च व्यस्यः परमा गतिः ॥
चाहे धनी हो या निर्धन, दुःखी हो या सुखी,
निर्दोष हो या सदोष, मित्र ही मनुष्य का सबसे बड़ा सहारा होता है।
त्य ही संसार में ईश्वर है; धर्म भी सत्य के ही आश्रित है;
सत्य ही समस्त भव – विभव का मूल है; सत्य से बढ़कर और कुछ नहीं है ।
त्य ही संसार में ईश्वर है; धर्म भी सत्य के ही आश्रित है;
सत्य ही समस्त भव – विभव का मूल है; सत्य से बढ़कर और कुछ नहीं है ।
त्य ही संसार में ईश्वर है; धर्म भी सत्य के ही आश्रित है;
सत्य ही समस्त भव – विभव का मूल है; सत्य से बढ़कर और कुछ नहीं है ।त्य ही संसार में ईश्वर है; धर्म भी सत्य के ही आश्रित है;
सत्य ही समस्त भव – विभव का मूल है; सत्य से बढ़कर और कुछ नहीं है ।त्य ही संसार में ईश्वर है; धर्म भी सत्य के ही आश्रित है;
सत्य ही समस्त भव – विभव का मूल है; सत्य से बढ़कर और कुछ नहीं है ।